गाजीपुर, 11 सितंबर, 2025 — गाजीपुर के गठिया गांव में बिजली के खंभे लगाने के विरोध में धरने पर बैठे एक दिव्यांग भाजपा कार्यकर्ता की पुलिस पिटाई से मौत हो गई। घटना के बाद इलाके में भारी तनाव, विरोध और प्रशासन के खिलाफ गुस्सा फैल गया है।
मामला गठिया गांव का है, जहाँ बिजली के खंभे लगाने की प्रक्रिया को लेकर स्थानीय किसानों और प्रभावित परिवारों में विवाद हो गया। आरोप है कि खंभे के तार खींचने की शुरुआत के बाद कुछ स्थानों में खेत की सीमा विवाद भी हुआ।
शिकायत मिलने पर लोग नोनहरा थाना पहुंचे और थाने के बाहर धरना देने लगे।
रात करीब डेढ़ बजे, थानाध्यक्ष द्वारा थाने की लाइट बंद कराई गई, जिससे अँधेरा फैल गया। इसके तुरंत बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया।
दिव्यांग भाजपा कार्यकर्ता सियाराम उपाध्याय (उर्फ जोखू) भागने की कोशिश करते समय गिर गए। गिरने के बाद पुलिसकर्मियों ने उन्हें घेर कर लाठियों से बुरी तरह से मारा। उनका पूरा शरीर जख्मी हो गया और खून से लथपथ हालत में गांव के रास्ते पर छोड़ दिया गया।
घायल अवस्था में उपचार नहीं हो पाने की वजह से उनकी हालत बिगड़ी। निजी चिकित्सक द्वारा कुछ प्राथमिक उपचार प्रदान किया गया, लेकिन सुबह होते-होते उनकी हालत और खराब हो गई और उल्टियाँ होने लगीं। अंततः उनकी मौत हो गई।
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रेस्पॉन्स और कार्रवाई
घटना के बाद ग्रामीणों में भारी गुस्सा भड़क गया। सैकड़ों की भीड़ ने पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन किया और शव को पोस्टमार्टम हेतु उठाने नहीं दिया। करीब 15 घंटे तक शव वहीं पड़ा रहा।
पुलिस अधीक्षक डा. ईरज राजा ने थानाध्यक्ष सहित 6 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है, जबकि 5 पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया गया है।
जिले के डीएम अविनाश कुमार ने मजिस्ट्रीयल जांच का आदेश दिया है और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है।
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राजनीतिक एवं सामाजिक प्रतिक्रिया
भाजपा और स्थानीय लोग घटना को पुलिस की अमानवीयता और व्यवस्था की लापरवाही करार दे रहे हैं। परिवार ने दोषियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने की मांग की है, साथ ही मुआवजा और सरकारी नौकरी की आशा जताई जा रही है।
घटना ने स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली और पुलिस की क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विपक्ष और मानवाधिकार संगठनों की नज़र में यह मामला कानून व्यवस्था और पुलिस जवाबदेही का एक गंभीर उदाहरण है।
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निष्कर्ष
यह घटना सिर्फ एक व्यक्तिगत अत्याचार का मामला नहीं, बल्कि व्यापक सामाजिक व राजनीतिक संकट की याद दिलाती है — जब प्रशासनिक और कानूनी सिस्टम नागरिकों की सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित नहीं कर पाते। आवश्यक है कि मामले की पारदर्शी जांच हो, दोषी किसी भी पद पर हों — उन्हें सज़ा मिले, और भविष्य में इस तरह की हिंसा रोकी जाए।
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