नई दिल्ली – हर साल 15 अगस्त को देशभर में आज़ादी का जश्न मनाया जाता है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी झलक दिल्ली के लाल किले से दिखती है। प्रधानमंत्री यहीं से तिरंगा फहराकर राष्ट्र को संबोधित करते हैं। सवाल है — आखिर लाल किला ही क्यों? और 15 अगस्त 1947 को वहां क्या हुआ था? आइए जानते हैं।
लाल किला: सत्ता और संघर्ष का प्रतीक
दिल्ली का लाल किला 17वीं सदी में मुगल सम्राट शाहजहां ने बनवाया था। यह न सिर्फ राजधानी शाहजहांाबाद का केंद्र था, बल्कि सदियों तक सत्ता का प्रतीक भी रहा।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में लाल किला अंग्रेजों के कब्ज़े में चला गया और लंबे समय तक दमन का गवाह बना। यही कारण है कि 1947 में स्वतंत्र भारत के लिए यह स्थान आज़ादी के नए युग का प्रतीक चुना गया।
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पहला ध्वजारोहण और संबोधन
15 अगस्त 1947 की सुबह, स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराया। यहीं से उन्होंने देश को अपना पहला सार्वजनिक संबोधन दिया।
इसके एक दिन पहले, यानी 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि में, उन्होंने संविधान सभा में अपना ऐतिहासिक भाषण “Tryst with Destiny” दिया था, जिसमें उन्होंने कहा — "At the stroke of the midnight hour, when the world sleeps, India will awake to life and freedom"।
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परंपरा जो आज तक जारी है
1947 से अब तक हर प्रधानमंत्री 15 अगस्त को लाल किले की लाहौरी गेट से तिरंगा फहराते हैं और देश को संबोधित करते हैं। यह परंपरा न केवल भारत की आज़ादी की याद दिलाती है, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए विकास और एकता का संदेश भी देती है।
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क्यों खास है यह आयोजन?
ऐतिहासिक महत्व – यह वही स्थान है जहां भारत की आज़ादी का पहला सार्वजनिक उत्सव हुआ।
राष्ट्रीय एकता का प्रतीक – पूरे देश की निगाहें हर साल लाल किले की ओर होती हैं।
सांस्कृतिक धरोहर – लाल किले की भव्यता समारोह को और यादगार बनाती है।
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निष्कर्ष
लाल किला सिर्फ ईंट-पत्थरों का किला नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्रता, संघर्ष और गौरव का प्रतीक है। 15 अगस्त को यहां से फहराया जाने वाला तिरंगा हर भारतीय के दिल में आज़ादी की लौ को और प्रज्वलित करता है।
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